बौद्ध परम्परा के अनुसार चतुर्मास /वर्षावास

चतुर्मास /वर्षावास
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 वर्षावास जिसे पाली भाषा में वस्सावास कहा जाता है। वर्षावास का अभिप्राय किसी एक स्थान पर वास करना या निवास करना होता है । बौद्ध परंपरा में आषाढ़ मास की पूर्णमासी से वर्षावास प्रारंभ होता है और आश्विन मास की पूर्णमासी को समाप्त होता है । यह वर्षावास 4 माह का होता है । इसलिए इसे चतुर्मास भी कहते हैं । इस दौरान बौद्ध भिक्षु किसी एक बुद्ध विहार में रहकर अध्ययन करते हैं, ध्यान साधना करते हैं , ज्ञान अर्जन करते हैं , फिर पुनः वर्ष के शेष महीनों में भ्रमण या चारिका करने निकल पडते हैं।
1. आषाढ मास की पूर्णिमा को सिद्धार्थ गौतम मानवता के कल्याण के लिए गृहत्याग किए थे , जिसे महाभिनिष्क्रमण कहा जाता है। इसी दिन बोधगया में बुद्धत्व प्राप्ति के उपरांत सारनाथ/ इसीपत्तन में पंचवग्गीय भिक्षुओं को प्रथम बार धर्म उपदेश दिया था। पहला ज्ञान दिया था । इसलिए इसे धम्मचक्क पवत्तन कहा जाता है।
2. सावन मास की पूर्णमासी को बौद्ध धर्म परिषद द्वारा मगध नरेश बिंबसार के पुत्र अजातशत्रु के शासनकाल में राजगृह की सप्तपर्णी गुफा में महाकस्सप की अध्यक्षता में 483 ई.पू. में प्रथम बौद्ध संगीति हुई थी जिसमें अरहत आनंद और उपाली ने तथागत गौतम बुद्ध के उपदेशों को सुतबद्ध किया था।
3.  भादों या भाद्रपद मास की पूर्णमासी जिसे मधु पूर्णमासी कहा जाता है । इस पूर्णमासी को बुद्ध ने भिक्षु संघ में उत्पन्न विवाद को शांत करने के लिए बुद्ध विहार को छोड़कर वन को गए थे और वन में वन के जीव-जंतुओं ने जैसे - हाथी, बंदर, तोता आदि ने इनके लिए भोजन की व्यवस्था की थी । उसी भोजन में शहद की भी व्यवस्था हुई थी । भोजन के रूप में मधु या शहद की व्यवस्था के कारण इसे मधु पूर्णिमा भी कहते हैं।
4.  आश्विन मास की पूर्णिमा जिसे बौद्ध पवरण पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति के 16 वें वर्ष बुद्ध ने अपनी मां महा प्रजापति गौतमी को बौद्ध धर्म में दीक्षा दी थी। पवरण का अर्थ है - अध्ययन या ज्ञान के समाप्ति का दिन। इस दिन वर्षावास के समाप्ति का दिन होता है ।इस दिन बौद्ध भिक्षुओं को चीवर दान , भोजन दान और उपहार दिए जाते हैं । बुद्ध विहारों को सजाया जाता है।
उपरोक्त चारों माह आषाढ़ ,श्रावण, भाद्रपद और आश्विन मिलकर चतुर्मास कहलाते हैं । इन्हीं चारों माह के वर्षा वाले समय में निवास को वर्षावास कहते हैं। इन चारों माह की पूर्णमासी का बौद्ध परंपरा में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है । इन पूर्णमासियों में बौद्ध उपासक को उपोसथ व्रत का पालन करना चाहिए।
                          . .उपासक..

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